एम4पीन्यूज
काश कोई इतना समझ ले तो मौत के बाद हजारों लोगों के लिए जिंदगी के मायने ही बदल जाएं। अाप सबने राजनेताओं को अाधुनिक उपकरणों का उद्घाटन करते हुए कईं बार देखा सुना होगा लेकिन क्या कभी किसी सीएम की पत्नी व पूर्व विदेश मंत्री को शमशान घाट का उद्घाटन करते हुए देखा है। खैर पंजाब सीएम की पत्नी लोगों को गैस के चुल्हे वाले शमशान घाट का इस्तेमाल करने को अवेयर कर रही हैं। खैर, जिस व्यकि्त के कभी पेड़ न लगाया हो वो इसे काटने का दुख नहीं समझ सकता। कुछ एेसा ही बयान कर रहे हैं ये लेखक–एल आर गांधी। इनका कथन अापको ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि अाखिर इतनी छोटी सी बात इतनी जरूरी क्यों है।
यूं तो आधुनिक युग में सक्षम लोग, उपलब्ध मेडिकल सुविधाओं के बल पर जीवन का सोमरस आखिरी बूँद तक पीने को आतुर हैं। इसी लिए पाश्चात्य विकसित देशों में लिविंग विल का प्रचलन है। गंभीर रुग्णावस्था जब मरीज़ कोई निर्णय लेने में असमर्थ हो जाए तो , लिविंग विल में नामित व्यक्ति फैसला लेता है।
आज़ादी के 70 बरस बाद और वह भी दुबई के एक पर्यावरण प्रेमी श्री ओबराय ने अपने खर्चे पर बीरजी शमशान में गैस के चूल्हों से चालित शव- दहन कक्ष की स्थापना की, इसका उद्घाटन महारानी परनीत कौर ने किया। मगर कई बार सांसद रह चुकी ‘मैडम ‘ ने ऐसे महत्वपूर कार्य पर कभी ध्यान दिया कि लकड़ी से दाह संस्कार पर देश भर में लाखों कविंटल बहुमूल्य लकड़ी जला दी जाती है। निरंतर प्राणवायु देने वाले पेड़ काट दिए जाते है।
हमारे रहनुमा आधुनिक संस्कार गृह के प्रति लोगों को प्रेरित करने में भी ‘असफल ‘ रह हैं। पहले महीने में इस गैस शव -दहन में केवल दर्जन भर शव पहुंचे। ये सभी लावारिस व्यक्ति थे महज़ एक शव स्वैच्छिक रहा।
जिस आदमी ने अपने जीवन में कभी कोई पेड़ नहीं लगाया ,वह किस अधिकार से जाते जाते 2 पेड़ों की बलि ले जाता है। स्वस्थ समाज के सृजन के लिए पेड़ काटने पर पूर्ण रोक लगनी चाहिए। युद्ध स्तर पर आधुनिक शव दहन मशीने लगाई जायँ और लोगो में जागरूकता फैलाई जाए जिस में धर्मगुरुओं का सहयोग बहुमूल्य रहेगा।
परम पुरुषार्थ का तकाज़ा तो यह है की अपने मृत शरीर को ‘दाण ‘ कर दिया जाए ताकि शरीर के उपयोगी अंग किसी के काम आ सकें। सभी की यह अंतिम अभिलाषा होनी चाहिए।
बाद के आडंबरों भरी खर्च के स्थान पर गरीबों और ज़रुरत मंद बालक-बालिकाओं की सहायता करना अधिक पुण्यकारी रहेगा।
सोचिएगा जरूर