रिवर्स बोरिंग – एक खतरनाक जुगाड़ से भूजल प्रदूषित !

एल.आर गांधी| चंडीगढ़

कुंठित लोग विपरीत वेधन से आने वाली पीढ़ियों के लिए गहरी-कब्रें  खोदने में व्यस्त हैं और भ्रष्ट व्यवस्था इन कब्रों पर अपनी  सुनहरी अट्टालिकाएं खड़ी  करने में मद -मस्त ! जिस वैज्ञानिक खोज को जन जन के लिए प्राणदायी जल पृथ्वी का सीना चीर प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है उसी को आज  कुछ कुंठित व्यवसायी अपने फायदे के लिए रिवर्स  बोरिंग से भू जल को दूषित करने का पाप किये जा रहे हैं।

 

 

Sepsis tank used for toilets is an example of reverse boring
क्या है रिवर्स बोरिंग
अकसर बोरिंग भूजल को निकालने के लिए की जाती रही है, लेकिन रिवर्स बोरिंग के माध्यम से बोरिंग कर जमीन के अंदर कचरे, कैमिकल दूषित जल को दफन किया जाता है। जिससे भूजल पानी तो दूषित तो हो ही रहा है साथ ही भूमि की उपजाऊ शक्ति भी दम तोड़ रही है, सेप्सिस टैंक भी कुछ एेसा ही काम करते हैं।
पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी जी ने भूजल को संतुलित रखने के महती उदेश्य से रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना चलाई थी।  सभी इंडस्ट्रियल यूनिट्स को यह सिस्टम अपने यूनिट्स में स्थापित करने को प्रोत्साहित किया गया ताकि भूजल को संतुलित रखने के लिए वर्षा ऋतु में जाया जाने वाले पानी को  बचाया जा सके  और यह जल जमीन के भीतर  पहुंचा कर भूजल स्तर को कायम रखा जा सके।  मगर कुछ लालची उद्योगपतियों ने इस प्रणाली को अपने इंडस्ट्रियल कचरे को खपाने का जरिया बना लिया। जिन पाईपो के ज़रिये वर्षा का साफ़ पानी भूगर्भ में जाता था उन्हीं के ज़रिये भूगर्भ में फैक्ट्री का प्रदूषित केमिकल युक्त प्रदूषित गन्दा पानी भूगर्भ में पहुँचाया जा रहा है. आने वाले समय में यही दूषित जल हमें पीने के पानी के रूप में मिलेगा।
शहरों के सीवरेज सिस्टम और उद्योगिक कचरा निरंतर नदियों और जलाशयों में गिरने के कारण.गंगा यमुना सरस्वती जैसी पवित्र नदियों का पानी भी इस कदर ‘गंदला ‘ हो गया है की सदिओं से भारत वासी जो गंगा जल आचमन को स्वर्गादपि मानते थे अब देख कर ‘हे राम ‘बोल देते हैं ज्यों ज्यों सरकार स्वच्छता अभ्यान के अंतर्गत नदी जल को प्रदूषण से रोकने के उपाए कर रही है और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार इकाइयों पर कड़ाई कर रही है ,त्यों त्यों उद्योगिक इकाईयां अपने कचरे को ठिकाने लगाने के रिवर्स बोरिंग जैसे  आसान और खतरनाक ‘जुगाड़ ‘ लगाने में  अग्रसर हैं।
पंजाबी अपनी कर्मठता पर बहुत इतरा रहे थे जब सत्तर के दशक में पंजाब को हरित क्रांति के लिए चुना गया। अधिक पैदावार का ऐसा चक्र चला कि इक होड़ सी लग गई। कीटनाशक अधिक से अधिक छिड़काव करने की।  राष्ट्रीय अनुपात जबकि 570 ग्राम पर हेक्टर का है पंजाबी अपने खेत में 123 ग्राम कीटनाशक छिड़कते हैं। बाकि कसर पूरी कर देते हैं उद्योग, अपना प्रदूषित गन्दा पानी निकट के जलाशयों में बहाकर इस कदर कुछ क्षेत्रो में फैला है कैंसर का रोग कि बठिंडा से बीकानेर राजस्थान के लिए १२ कोच की  एक विशेष ट्रेन चलाई गई है। पंजाब सरकार के कैंसर रोगियों के लिए किये गए ‘उपराले ‘ बौने पड़  गए हैं । रोज़ लगभग 100 कैंसर मरीज़ इस ट्रेन से बीकानेर अस्पताल के लिए सवार होते हैं।  पंजाब का मालवा रीज़न जो कपास के लिए जाना जाता है। यहाँ लगभग 15 प्रकार के पेस्टीसाईड्ज़ का प्रयोग होता है। लहलहाती फसलों के बीच कैंसर पीड़ित किसान परिवारों का दर्द किसी को दिखाई नहीं देता।
उद्योगीकरण के साथ साथ इनके द्वारा विसर्जित कचरा बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। प्रदूषण रोकने के लिए प्रशासन की सख्ती के चलते उद्योग इस कचरे को ठिकाने लगाने के सस्ते और सुलभ जुगाड़ लगा रहे हैं । रिवर्स बोरिंग का जुगाड़ सबसे आसान ‘लगता ‘ और यह कितना ख़तरनाक है यह पृथ्वी के गर्भ में छुपा है। समय रहते यदि इस जुगाड़ पर नकेल न कसी गयी तो वह दिन दूर नहीं जब देश के हरेक नगर से एक ‘कैंसर पीड़ित ‘ ट्रेन लबा लब भर कर जाएगी और गंतव्य होगा ! न मालूम !

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