आज विश्व के अर्वाचीन अलौकिक प्रेमियों का क्षितिज में लुकाछिपी महोत्सव है

 | एल आर गांधी की कलम से
अनंतकाल से धरा अपने प्रेमी दिनकर की परिक्रमा में नृत्य निमंगम।  दिन रात अपने प्रियतम की ग्रीषम किरणों से ऊर्जा प्राप्त कर उसे नुहारती और निहारती है, दिनकर भी अपनी इस अलौकिक प्रेमिका को अपनी किरणों के  बाहुपाश में जकड कर खूब प्रेम करता है। थकी-हारी धरा जब रात के आगोश में जाती है तो उसका सखा चन्द्रमा उसे अपनी चांदनी की शीतल चादर ओढ़ा कर सच्चे मित्र धर्म का निर्वहन करता है।
आज के महोत्सव के मंच संचालन का कार्य सूर्यदेव के हाथों में है, नायक चन्द्रमा और नायिका हैं भूमि। अपनी नायिका की परिक्रमा करते करते चंदमा उसके आँचल में ही छुप जाता है।  धरा इस नटखट को ढून्ढ रही है, आज नन्हे नटखट का रूप ही निराला है। पूर्णमासी के चलते एक तो आकार बड़ा हो गया ऊपर से रूप अनोखे रंग बदल रहा है ,कभी सफ़ेद -चमकदार ,तो कभी नीला व् ब्लड मून फिर सुपर मून।
धरा के आँचल से एक डायमंड रिंग दिखा कर मानो अपनी मित्र को प्रेम सन्देश दिया हो ! धरा के मुख पर ‘आश्चर्य ‘ की रेखाएं देख घबराहट में नटखट चाँद भी शर्मा कर लाल हो जाता है। खगोल शास्त्रियों का मानना है की चंदमा के ये वचित्र रंग 35 वर्ष के अंतराल के बाद देखने को मिले है। ज्योतषिओ का विचार है  की पुण्य नक्षत्र का शुभ योग 158 साल बाद देखने को मिला है
यह समागम शाम के 4 बजके 11 मिनट पर आरम्भ हो कर रात्रि के 8 बज कर 31 मिनट तक चलेगा।  वैज्ञानिक अपने यंत्रों के कौशल से इस प्राकृतिक व् अलौकिक दृश्य का अध्ययन करेंगे और ज्योतिषी धर्मभीरु जातकों को चंद्र ग्रहण के भयंकर अहितकर परिणामों से डरा कर करम कांड के नाम पर अपनी चाँदी कूटेंगे ! चंद्र ग्रहण के दर्शन कुंवारे युवको के लिए घोर अहितकर हैं। जिसने चाँद के दर्शन कर लिए। समझ लो उसकी किस्मत में तो चाँद से मुखड़े के दर्शन दुर्लभ हो जायेंगे !
हमारी देवी जी ने तो सभी खाद्य पदार्थों में दूब के तिनके टिका दिए है। इसे कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा !
हमने तो अपने गिलास में देवताओं का सोमरस डाल कर टीवी पर चंद्र,धरा व् दिनकर का अलौकिक महोत्सव निहारते हुए वर्ष के प्रथम चंद्र ग्रहण का आनंद उठाने का जुगाड़ कर लिया !

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