-पंजाब सरकार का 61 साल पुराना गैरजिम्मेदारना रवैया
एम4पीन्यूज, ंचंडीगढ़
बेशक पंजाब सरकार अब विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर राजस्थान, हरियाणा सहित दिल्ली से भी पानी की कीमत वसूलने का दावा कर रही हो लेकिन पिछले 61 साल से सरकार इस वसूली पर गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाती आ रही है।
कम से कम 29 जनवरी 1955 का सीक्रेट डॉक्यूमेंट तो यही कहानी बयां करता है। 1955 में तब के केंद्रीय सिंचाई मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने रावी-ब्यास नदी के प्री-पार्टिशन यूज के तहत 15.85 एम.ए.एफ. पानी को राज्यों के बीच बांटने को लेकर दिल्ली में एक इंटर स्टेट कॉन्फ्रैंस बुलाई थी। इस बैठक में रावी-ब्यास नदी से पंजाब को 5.90 एम.ए.एफ, राजस्थान को 8.00 एम.ए.एफ, पेप्सू को 1.30 एम.ए.एफ और जम्मू-कश्मीर को 0.65 एम.ए.एफ पानी देने का निर्णय लिया गया था। बैठक में कहा गया था कि यह बैठक केवल पानी के डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर की गई है। जहां तक सवाल पानी की कीमत व इसके भंडारीकरण की कीमत वसूली का सवाल है तो इस मसले पर अलग से विचार किया जाएगा। यह अलग बात है कि पंजाब सरकार ने इस मसले पर कभी भी अलग से विचार-विमर्श की पहल नहीं की।
2008 में उठा सवाल
पंजाब के रिटायर्ड पी.सी.एस. अधिकारी प्रीतम सिंह कूमेदान के पंजाब सरकार को 28 दिसंबर 2008 के दौरान लिखे पत्र पर निगाह डाले तो प्रीतम सिंह ने मुख्यमंत्री को पानी की कीमत वसूली के मसले पर अवगत करवाया था। कूमेदान ने अपने पत्र में कहा है कि 1955 में हुई कॉन्फ्रैंस के क्लॉज-5 में लिखा गया है कि पानी की कीमत वसूली पर अलग से विचार-विमर्श किया जाएगा लेकिन इसे भूला दिया गया। नॉन रिपेरियन स्टेट होने के कारण राजस्थान से इसकी वसूली पेडिंग है, जो हजारों करोड़ रुपए बनती है। इसलिए पंजाब सरकार जल्द से जल्द यह मामला केंद्र सरकार व राजस्थान सरकार के समक्ष उठाए। यह अलग बात है कि तब भी इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
2009 में फिर उठाया मामला
प्रीतम सिंह ने 17 अक्तूबर 2009 को एक बार फिर पानी की कीमत वसूली का मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाने की कोशिश की। अपने पत्र में इस बार कूमेदान ने लिखा कि राजस्थान को पानी देने के कारण पंजाब को बिजली व डीजल का उपयोग कर भू-जल का दोहन करना पड़ा। पंजाब ने प्रति वर्ष एक करोड़ एकड़ फीट भू-जल का इस्तेमाल किया, जिसे निकालने के लिए 40 साल में पंजाब को 80 हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े हैं। राजस्थान को होने वाली पानी की सप्लाई का हिसाब-किताब अभी बाकी है। प्रीतम सिंह ने इस पत्र के जरिए एक बार फिर पंजाब सरकार से इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने का अनुरोध किया लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा।
नॉन रिपेरियन स्टेट ने दी है रॉयल्टी
प्रीतम सिंह ने अपने पत्र के साथ एक नोट लिखते हुए बताया है कि पूरे विश्व नॉन रिपेरियन स्टेट को पानी की कीमत के बावजूद पानी नहीं दिया गया है और न ही इसे लेकर रिपेरियन व नॉन रिपेरियन स्टेट में कोई विवाद रहा है। हालांकि भारत के पंजाब राज्य में दो बार रॉयल्टी देकर नॉन रिपेरियन को पानी की सप्लाई हुई है। ब्रिटिश राज्य के दौरान 1873 में पटियाला, नाभा व जींद को पानी दिया गया। इस दौरान निर्णय लिया गया कि रिपेरियन राज्य के तौर पर पंजाब का पानी पर अधिकार है, इसलिए नाभा, पटियाला व जींद की रियासतें पानी पर रॉयल्टी देंगी। 1945-46 तक रॉयल्टी देने का यह सिलसिला जारी भी रहा। इसी तरह, 1918 में पंजाब बीकानेर को पानी देने के लिए राजी हुआ। इसपर भावलपुर स्टेट के राजा ने ऐतराज जताया कि नॉन रिपेरियन स्टेट को पानी नहीं दिया जा सकता। तब पंजाब ने अपने वाटर शेयर से बीकानेर स्टेट को पानी देने की पहल की। इस संबंध में 4 सितंबर 1920 को समझौता किया गया, जिसके बाद बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने गंग कैनाल के जरिए राजस्थान पर पानी की सप्लाई ली और बदले में पंजाब को रॉयल्टी दी।
अब नॉन रिपेरियन से वसूली का राग अलाप रही पंजाब सरकार
विधानसभा में हाल ही में इन्हीं तथ्यों के आधार पर विधानसभा पुरजोर तरीके से सरकार को सिफारिश करती है कि सरकार जल्द से जल्द यह मामला केंद्र सरकार के समक्ष उठाया जाए ताकि गैर रिपेरियन राज्यों को हुई पानी की सप्लाई पर पंजाब को बनती अदायगी मिल सके। मित्तल ने कहा कि 1966 में पंजाब री-आर्गेनाइजेशन एक्ट के बाद से पंजाब अलग राज्य घोषित हो चुका है। संविधान के मुताबिक पंजाब में बहने वाले पानी पर पंजाब का अधिकार है। इस लिहाज से गैर रिपेरियन राज्य हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान को होने वाली पानी की सप्लाई पर पंजाब को उसकी बनती कीमत मिलनी ही चाहिए।