-प्रकृति की गोद में समाई अपार सुंदरता, सुकून और मनमोहक नज़ारे

एम4पीन्यूज। 

पहाड़ो और इसकी सुंदरता की बात करो तो न जाने कितने ही नाम ज़हन में उभर कर आते हैं। सैकड़ों ऐसी जगह हैं जिनसे हम अनजान हैं। ऐसी जगह जहां कुदरत ने खूबसूरती दिल खोलकर लुटाई है। कुदरत के ऐसे नजारे कि आंखें खुली की खुली रह जाएं। थोड़ी-बहुत मुश्किल जरूर होगी लेकिन होंगे जन्नत सरीखी खूबसूरती के दीदार।

पर्यटन राज्य के तौर पर देश में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हिमाचल प्रदेश में अभी भी दर्जनों ऐसे स्थान हैं जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने के बावजूद ज्यादातर पर्यटकों की जानकारी में नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ये पर्यटन स्थल आम पर्यटकों की पहुंच से बाहर हैं या यहां पहुंचना मुश्किल है, बात सिर्फ यह है कि प्रचार-प्रसार की कमी के चलते या तो पर्यटकों को इनके बारे में पता नहीं है या फिर अधिकांश पर्यटक शिमला, कुल्लू-मनाली और डलहौजी व धर्मशाला जैसे पारंपरिक पर्यटन स्थलों से बाहर जाना नहीं चाहते। लेकिन ऐसी बहुत सी जगह है पर्यटकों की भारी भीड़ से दूर, ऐसे नज़ारे जो किसी भी मशहूर पर्यटन स्थल से कम नहीं हैं।

ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू
ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू

अंग्रेजों के समय में शिमला हिल्स के तौर पर मशहूर रहे शिमला और सोलन जिलों में ही कई ऐसे स्थान हैं जहां का रुख आम पर्यटक नहीं करते। शिमला से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मशहूर पर्यटन स्थल नारकंडा के सामने दिखाई देने वाली हाटू पीक भी एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहां जाकर दिल को सकून मिलता है। नारकंडा से आठ किलोमीटर की दूरी वाले इस स्थान तक जाने के लिए सड़क की सुविधा भी उपलब्ध है। शिमला जिले के इसी हिस्से में बग्गी और खदराला नामक ऐसे दो और स्थान हैं जहां कुदरत के नजारों को देखकर आंखें खुली रह जाती हैं। ये दोनों स्थान नारकंडा से आगे पुरानी हिन्दुस्तान- तिब्बत सड़क पर स्थित हैं। इन दोनों स्थानों पर सरकारी रेस्टहाउस हैं लेकिन यहां पहले से बुकिंग कराकर ही जाया जा सकता है। नारकंडा से ही करीब एक घंटे की ड्राइव करके थानाधार और कोटगढ़ भी पहुंचा जा सकता है। लाल सेब के लिए मशहूर इस क्षेत्र में पहुंचते ही सेब की भीनी-भीनी खुशबू आपका स्वागत करेगी।

ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू
ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू

सोलन जिले के कसौली और चायल के बारे में तो लगभग हर पर्यटक जानता है लेकिन सुबाथू, कुनिहार और अर्की जैसी जगहों के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। सुबाथू एक छावनी क्षेत्र है। सुबाथू से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुनिहार में एक प्राचीन शिव तांडव गुफा है। इससे 15 किलोमीटर आगे अर्की में भी लुटरू महादेव की प्राचीन गुफा है। सोलन जिले में ही कालका-शिमला हाईवे पर थोड़ा ऊपर की तरफ स्थित डगशाई भी घूमने योग्य जगह है। चीड़ के पेड़ों से घिरे डगशाई में एक चर्च और एक आर्मी म्यूजियम है।

ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू
ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू

सिरमौर जिले की अगर बात करें तो यहां मशहूर पर्यटन स्थल रेणुका झील के अलावा भी काफी कुछ है। सिरमौर के जिला मुख्यालय नाहन से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित त्रिलोकपुर मंदिर धार्मिक पर्यटन में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है। इसी तरह नाहन से सिर्फ नौ किलोमीटर की दूरी तय करके बीर बिक्रमाबाद नामक एक ऐसी जगह पर भी पहुंचा जा सकता है जहां कभी सिरमौर के शासक निशाना लगाना सीखते थे। इसी तरह पांवटा से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सिरमुरी ताल। सिरमौर जिले में हरीपुरधार और नोहराधार नाम के दो और स्थान ऐसे हैं जहां बिना किसी भीड़भाड़ के कुदरत की खूबसूरती का भरपूर मजा उठाया जा सकता है।

ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू
ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू

कुल्लू जिले में मनाली और मणिकर्ण के अलावा ऐसी अनेक जगहें हैं जहां के प्राकृतिक सौंदर्य का कोई सानी नहीं है। मंडी और कुल्लू के बीच औट नामक स्थान से बंजार की तरफ जाने वाले रास्ते पर चलकर हम खूबसूरत तीर्थन घाटी से रूबरू हो सकते हैं। इसी क्षेत्र में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क भी स्थित है। कुल्लू शहर के सामने वाली पहाड़ी पर बिजली महादेव के प्राचीन मंदिर के दर्शन करने पर आप करीब 1924 मीटर ऊंची पहाड़ी से दूर-दूर की पर्वत शृंखलाओं के नजारे देख सकते हैं।

ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू
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चंबा जाने वाले पर्यटक आमतौर पर खजियार और डलहौजी ही जाकर वापिस लौट आते हैं। लेकिन यदि आपके पास समय है तो आप चंबा से सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित जुमहर, भलेई, छतरारी, डराकुंड और दुनाली जरूर जाएं। इन सभी जगहों पर चंबा से आधे घंटे से लेकर ढाई तीन घंटों का सफर तय करके पहुंचा जा सकता है।

सुकून की तलाश में आए पं. नेहरू
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मनाली को छोड़कर हिमाचल प्रदेश के अन्य सभी लोकप्रिय पर्यटन स्थलों को अगर अंग्रेजों की देन कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यूरोप की आबोहवा से मेल खाते ये पर्यटन स्थल उनके लिए भारत की तेज गर्मी से बचने के साधन थे। शिमला को ब्रिटिश शासनकाल की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का एकमात्र उद्देश्य यही था कि अंग्रेज दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी को सहन नहीं करना चाहते थे। अगर अंग्रेज न होते तो शायद शिमला भी आज ऐसा न होता, जैसा है। इसी तरह चंबा जिले के डलहौजी और धर्मशाला के मैकलोडगंज के साथ भी अंग्रेजों का संबंध रहा है। नेहरू के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्हें मनाली अत्यधिक पसंद था। वाजपेयी मनाली को अपना दूसरा घर मानते रहे हैं।

ये हैं कुदरत के खजाने के कुछ अनछुए-अनजाने पहलू
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और भी बहुत कुछ
शिमला शहर की अगर बात करें तो यहां आने वाले पर्यटक भी माल रोड और रिज के अलावा ज्यादा से ज्यादा जाखू मंदिर या संकट मोचन के साथ-साथ कुफरी और नालदेहरा घूमकर ही वापिस लौट जाते हैं। शिमला में ऐसी कई जगह हैं जहां गिने-चुने पर्यटक ही पहुंचते हैं। मसलन अनाडेल मैदान को देखने वाले पर्यटकों की संख्या आज ना के बराबर है। फुटबॉल के डूरंड कप की शुरुआत कभी इसी मैदान से हुई थी। अपनी हरी भरी घास और एक बेहतरीन गोल्फ कोर्स के लिए मशहूर इस मैदान के साथ सेना का एक म्यूजियम भी है। हिमाचल विधानसभा से अनाडेल जाने वाले रास्ते से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है।

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