एम4पीन्यूज।
क्या आपने कभी किसी ऐसी जगह के बारे में सुना है, जहां का बच्चा-बच्चा संस्कृत में बात करता हो? जहां एक तरफ़ भारत के लोग संस्कृत को पीछे छोड़ते जा रहा है, वहां कर्नाटक के शिमोंग ज़िले स्थित मत्तूर गांव संस्कृत रोज़मर्रा की ज़बान है. भारत में केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत या जर्मन पढ़ाए जाने की बहस से कर्नाटक का मत्तूरु गाँव लगभग अछूता है.
कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु से 300 किलोमीटर दूर स्थित मत्तूरु गाँव के इस बहस से दूर होने की वजह थोड़ी अलग है. यहां चाहे हिंदू हो या मुसलमान, इस गांव में रहने वाले सभी लोग संस्कृत में ही बातें करते हैं. यूं तो आसपास के गांवों में लोग कन्नड़ भाषा बोलते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है.
इस गाँव में यह बदलाव 32 साल पहले स्वीकार की गई चुनौती के कारण आया. 1981-82 तक इस गाँव में राज्य की कन्नड़ भाषा ही बोली जाती थी. कई लोग तमिल भी बोलते थे, क्योंकि पड़ोसी तमिलनाडु राज्य से बहुत सारे मज़दूर क़रीब 100 साल पहले यहाँ काम के सिलसिले में आकर बस गए थे. इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है. हालांकि, बाद में यहां के लोग भी कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे, 1981-82 तक यहाँ कन्नड़ ही बोली जाती थी.
लेकिन 33 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया था और मात्र 10 दिनों तक 2 घंटे के अभ्यास से पूरा गाँव संस्कृत में बात करने लगा था. इसके बाद से सारे लोग आपस में संस्कृत में बातें करने लगे. मत्तूरु गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है.
वर्तमान में यहाँ के सभी निवासी संस्कृत समझते है और अधिकांश निवासी संस्कृत में ही बात करते है. इस गाँव में संस्कृत भाषा के क्रेज़ का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते है की वर्तमान में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से लगभग आधे प्रथम भाषा के रूप में संस्कृत पढ़ रहे है.
संस्कृत भाषी इस गांव के युवा बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं. कुछ साफ्टवेयर इंजीनियर हैं तो कुछ बड़े शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं.
इतना ही नहीं, विदेशों से भी कई लोग संस्कृत सीखने के लिए इस गांव में आते हैं. इस गाँव से जुडी एक रोचक बात यह भी है की इस गाँव में आज तक कोई भूमि विवाद नहीं हुआ है.