एम4पीन्यूज। दिल्ली
पिछले 5 सालों में देश में 1.25 करोड़ से ज्यादा कारें बिकीं. 2015 में 2 करोड़ लोगों ने विदेश यात्राएं कीं. लेकिन देश में सिर्फ 20 लाख लोग ऐसे हैं जो नौकरी नहीं करते पर 5 लाख से ज्यादा कमाते हैं.
बजट भाषण में वित्त मंत्री ने ये सब कहते हुए कई लोगों की दुखती रग पर हाथ रख दिया कि “हमारा समाज मुख्यतः टैक्स को न मानने वाला समाज है.” सरकारी आंकड़े ख़ुद इसकी गवाही देते हैं. सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले देश में सिर्फ 76 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी आमदनी 5 लाख से ज्यादा है और उनमें से 56 लाख सैलरी पाने वाले हैं यानी नौकरी करते हैं.
आंकड़ों के मुताबिक देश में आयकर रिटर्न भरने वालों की कुल संख्या 3.7 करोड़ और टैक्स देने वालों की संख्या 2.7 करोड़ ही है. वित्त मंत्री की मानें तो एक तरह से 2.7 करोड़ आय करदाताओं के कंधों पर देश की सवा अरब से ज्यादा आबादी का बोझ है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को आयकर देने वालों का दायरा बढ़ाने का रास्ता तलाशना चाहिए. सरकार टैक्स के दायरे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाने की बात तो करती है, लेकिन हक़ीक़त में ज़्यादा कुछ करती हुई नहीं दिखती. वित्त मंत्री ने भी अपने बजट भाषण में मर्ज़ का जिक्र तो किया पर इसकी दवा नहीं बताई.
अब लौटकर तस्वीर के दूसरे पहलू की तरफ चलते हैं. नोटबंदी के बाद 1.48 लाख ऐसे बैंक खातों की पहचान की गई है जिनमें 80 लाख रुपए से ज्यादा जमा किए गए.
जाहिर है कि ये आंकड़े वित्त मंत्री के इस बयान की तस्दीक करते हैं कि “अर्थव्यवस्था में जब नकदी बहुत ज्यादा होती है तो कुछ लोगों के लिए टैक्स चोरी का रास्ता खुल जाता है. जब बहुत से लोग टैक्स चोरी करने लगते हैं तो उनकी हिस्सेदारी का बोझ दूसरे ईमानदार लोगों पर पड़ जाता है.”