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चीन ने 14वें दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर भारत से कड़ी नाराज़गी जताई है. हालांकि भारत ने कहा कि चीन को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश गए. इसके बाद चीन ने भारतीय राजदूत वीके गोखले को समन भेज कड़ा विरोध जताया. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा, ”इस यात्रा का भारत और चीन के संबंधों पर ज़रूर असर पड़ेगा. इससे भारत को कई फ़ायदा नहीं होने वाला है.”
दलाई लामा 81 साल के तिब्बती आध्यात्मिक नेता है. चीन-तिब्बत पर अपना दावा पेश करता है. जिस देश में भी दलाई लामा जाते हैं वहां की सरकारों से चीन आधिकारिक तौर पर आपत्ति जताता है.
आख़िर क्यों जताता है चीन आपत्ति :
चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है. वह सोचता है कि दलाई लामा उसके लिए समस्या हैं. दलाई लामा अमरीका भी जाते हैं तो चीन के कान खड़े हो जाते हैं. हालांकि 2010 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन के विरोध के बावजूद दलाई लामा से मुलाक़ात की थी.चीन और दलाई लामा का इतिहास ही चीन और तिब्बत का इतिहास है.
चीन का मानना है कि दलाई लामा ने तो उसी समय धर्मगुरु की अपनी हैसियत गंवा दी थी, जब वह देश छोड़कर भागे थे और लोगों के साथ विश्वासघात किया था। यदि दलाई लामा लौटना चाहते हैं, तो उन्हें तिब्बत की आजादी का राग छोड़ना पड़ेगा। सार्वजनिक तौर पर यह कबूल करना होगा कि तिब्बत व ताईवान चीन का अभिन्न हिस्सा हैं और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ही वैध हुकूमत है। चीन ने अपने सैलानियों को भी चेतावनी दी हुई है कि वे दलाई लामा से दूर रहें।
14वें दलाई लामा से नाराज चीन :
तिब्बती धर्मगुरु 14वें दलाई लामा किसी से मिलने जाएं या उनसे कोई मिलने आए इस पर चीन आग बबूला होने लगता है। जब उसे खबर मिली कि अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प दलाई लामा से मुलाकात करेंगे तो उसने तुरंत एतराज जता दिया। तिब्बती धर्मगुरु जब कभी अमरीका की राजधानी में होते हैं तो राष्ट्रपति से आम तौर पर मुलाकात करते हैं। इस पर चीन कसमसाता रहता है। अमरीका ने तिब्ब्त पर चीन के जबरन कब्जे की नीति का हमेशा विरोध किया है। उसने चीन में ताईवान का एकीकरण भी स्वीकार नहीं किया।
तिब्बत, भारत और चीन के बीच ‘बफर स्टेट’ :
यदि पृष्ठभूमि में जाएं तो तिब्बत एक स्वतंत्र देश था। वह भारत और चीन के बीच ‘बफर स्टेट’ बना हुआ था। भारत के साथ तो तिब्बत के संबंध सदियों पुराने रहे हैं। अंग्रेजों के समय में वहां भारतीय रेल चलती थी। भारतीय डाकघर कार्यरत थे। भारतीय पुलिस थी और सेना की एक छोटी सी टुकड़ी भी देश की रक्षा के लिए तैनात थी। तिब्बत में भारतीय मुद्रा का चलन था। भूटान की तरह तिब्बत भी वैदेशिक और सुरक्षा के मामले में भारत पर निर्भर था। सब कुछ बदल गया, जब 1949 में चीन की मुख्य भूमि पर साम्यवादियों का कब्जा हो गया।
उन्होंने तिब्बत पर चढ़ाई कर दी और उसे हड़प लिया। जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने विरोध किया तो चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाई ने उन्हें भरोसा दिलाया कि चीन-तिब्बत की राजनैतिक स्वायतत्ता और धार्मिक स्वतंत्र रखेगा। देखते ही देखते चीन ने तिब्बत के बौध्द मठों को ध्वस्त करना और दलाई लामा को हर तरह से तंग करना शुरू कर दिया।
जब दलाई लामा को सूचना मिली कि चीन की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके बीजिंग ले जाना चाहती है तो वे 1959 में रातों रात अपने सैकड़ों सहयोगियों के साथ भारत आ गए। भारत सरकार ने उन्हें शरण दी। चीन ने भारत से दलाई लामा को लौटाने के लिए कहा, परन्तु पंडित नेहरू इस पर राजी नहीं हुए। तब से चीन और भारत के संबंध बिगड़ते चले गए। चीन ने 1962 में भारत पर एकाएक चढ़ाई कर दी। भारत चीन की इस धोखेबाजी के लिए तैयार नहीं था। परिणाम हुआ कि वह बुरी तरह हार गया।
चीन पिछले कई वर्षों से कह रहा है कि तिब्बत हमेशा चीन का अंग रहा है। जब 1933 में 14वें दलाई लामा का चुनाव हुआ था तो वह तत्कालीन चीनी सरकार की सहमति से ही हुआ था। उस समय चीन में ‘केएमटी’ या ‘क्यू मिन तांग’ की सरकार थी। जब इस सरकार ने मंजूरी दी तभी 14वें दलाई लामा का चुनाव हुआ। भारत सहित दुनिया के सभी प्रसिध्द इतिहासकार कहते हैं कि यह सरासर झूठ है। 14वें दलाई लामा के चुनाव में चीन की कोई भूमिका और सहमति नहीं थी।
चीन को भारत में दलाई लामा को शरण मिलना अच्छा नहीं लगा. तब चीन में माओत्से तुंग का शासन था. दलाई लामा और चीन के कम्युनिस्ट शासन के बीच तनाव बढ़ता गया. दलाई लामा को दुनिया भर से सहानुभूति मिली लेकिन अब तक वह निर्वासन की ही ज़िंदगी जी रहे हैं.1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान मिला. दलाई लामा का अब कहना है कि वह चीन से आज़ादी नहीं चाहते हैं, लेकिन स्वायतता चाहते हैं. 1950 के दशक से दलाई लामा और चीन के बीच शुरू हुआ विवाद अभी ख़त्म नहीं हुआ है. दलाई लामा के भारत में रहने से चीन से रिश्ते अक्सर ख़राब रहते हैं. दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हो चुका है. भारत का रुख भी तिब्बत को लेकर बदलता रहा है.