एल.आर गांधी|पटियाला
रियासती रजवाड़ों के वक्त जहाँ जन हित के कामों को ख़ास तवज्जो दी जाती थी वहीँ जानवरों के हितों का भी ख़ास ध्यान रखा जाता था । जैसे बेसहारा पशुओं के लिए ‘गौशालाएं ‘ कुत्तों के लिए ‘कुत्ता खांना ‘ राजा का अनुसरण करते हुए जनता भी खाने से पूर्व ‘गौग्रास व् कुकुर-ग्रास ‘ निकलना नहीं भूलते थे। हमारे पूर्वज तो घर की दहलीज़ पर एक बड़ा सा काला नमक का ‘डला ‘ रखते थे ताकि शाम को चरागाह से लौटते हुए गाएं काला नमक चाटती जाएं ताकि उनका पाचन तंत्र स्वस्थ रहे।
राजे भी वही हैं और राजतंत्र भी वहीँ का वहीँ, मगर सोच बदल गई। बादल सरकार ने अपने आखिरी साल में राज्य की 336 बड़ी निजी गाए शालाओं को बिजली मुफ्त कर दी थी, जिस पर सरकार का 4 करोड़ खर्च आता था और लाभ मिलता था 1.5 लाख बेज़ुबान पशुओं को। अब हमारे महाराज भला कैसे सहन करते बादल के किये कामों को चाहे भलाई के ही हों ! सभी गौशालाओं को मुफ्त बिजली ‘बँद ‘ कर दी गयी , मगर कई कामों के लिए यहां बिजली मुफ्त दी जाती है, खैर ठीक भी है लोगों ने कैप्टन साहिब को वोट दिया है गाएं तो वोट नहीं डालती !
राजा की भांति ही प्रजा भी गौग्रास या कुकुर-ग्रास को बिसरा चुकी है। गौ भक्त और पशु प्रेमी शोर तो खूब मचाते हैं, मगर ज़मीनी स्तर पर ज़ीरो हैं ! कमाल की बात है कि किसी को 40 डिग्री के पार जा चुके पारे में बेजुबानों पर तरस नहीं आया। कहने को हम सब इंसान हैं लेकिन इंसानियत गुम सी हो गई है। सोचिये गौशालाओं में भरी गर्मी में ढ़ेरो गायें झुलसेंगी क्योंकि बिजली के कनेक्शन काट दिए गए हैं। कैप्टन साहिब अाप खुद बोल कर गर्मी बता सकते हैं ये बेजुबान हैं क्या इनका दर्द समझना अापके और अापके इलेक्शन मैनिफैस्टो की शान के खिलाफ है
बेचारी गाय भी सोच रही होगी काश यहां भी कोई .योगी आ जाता कम से कम हमें भर गरमी में झुलसना तो नहीं पड़ता।