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खूबसूरत दिखने के लिए महिलाएं कई सारे तरीके अपनाती हैं। कोई दादी-नानी के नुस्खे अपनाता है तो कोई एक से एक बेहतरीन ब्यूटी प्रोडक्ट्स यूज़ करता है। हर संस्कृति में ख़ूबसूरती के पैमाने अलग-अलग हैं। कहीं महिला को सोलह श्रृंगार करने पड़ते हैं तो कहीं परदे को एक महिला के असली श्रृंगार के रूप में देखा जाता है। आज से सैकड़ों साल पहले चीन की महिलाओं को सुन्दर दिखने के लिए सहना पड़ता था। ख़ूबसूरती का ऐसा पैमाना जिसके बारे में पढ़ने के बाद आपका सुंदरता के इस बने-बनाए कॉन्सेप्ट से पूरी तरह से विश्वास उठ जाएगा।

खूबसूरत दिखाने के लिए ऐसे होती थी क्रूरता, काटकर छोटे कर दिए जाते थे पैर!
खूबसूरत दिखाने के लिए ऐसे होती थी क्रूरता, काटकर छोटे कर दिए जाते थे पैर!

चाईनीज़ फुट बाइंडिंग प्राचीन चीन का वो काला अध्याय है जिसे अभी कई लोगों ने नहीं पढ़ा है। फुट बाइंडिंग एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसमें महिलाओं के पंजों को एक ख़ास तरह से मोड़ दिया जाता था या यूं कहें कि तोड़ दिया जाता था। उसे “लोटस फुट” यानी एक कमल का आकार देने की कोशिश की जाती थी। जिस महिला के पैर का आकार जितना छोटा होता था उसे उतना खूबसूरत माना जाता था।

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यह भयावह परंपरा दसवीं शताब्दी की एक राज नर्तकी याओ नियांग द्वारा शांग डायनेस्टी में शुरू की गयी। वो अपने पैरों को दुइज के चाँद के आकार में बांध कर आई थी और इसी के बाद से चीन की संभ्रांत महिलाओं में अपने पैर के आकार को छोटा करने की एक बेहद अजीबो-गरीब परंपरा शुरू हो गयी। हैरानी की बात ये कि इस परंपरा को आगे ले जाने का काम बड़े घर की महिलाओं ने किया जबकि आम तौर पर छोटे तबके पर हमेशा से यह आरोप लगाया जाता है कि महिलाओं को लेकर वहां सोच काफी संकीर्ण हो जाती है या वहां महिलाओं का शोषण अधिक है। वो महिलायें जो आर्थिक रूप से मज़बूत थीं और जिनके घर में कई नौकर-चाकर होते थे उन्हें ज़ाहिर तौर पर घर का काम नहीं करना पड़ता था। उन्हें ज्यादा चलना फिरना नहीं पड़ता था इसलिए इन महिलाओं में खूबसूरत दिखने की एक होड़-सी पैदा हो गयी।

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गोल्डन लोटस एक तीन इंच के पैर को कहा जाता था, इसे सबसे बेहतर माना जाता था। चार इंच के पैर को सिल्वर लोटस कहा जाता था पर पांच इंच के पैरों को बिलकुल भी अच्छा नहीं माना जाता था साथ ही इसे आयरन लोटस के नाम से पुकारा जाता था।

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इस प्रक्रिया में सबसे पहले लड़कियों के पैरों को गर्म पानी से धोया जाता था जिसमें कई जड़ी बूटियां और पशुओं का खून मिलाया जाता था, इसके बाद उनके पैरों पर मालिश करते हुए पैर के अंगूठे की हड्डी तोड़ कर अन्दर की तरफ मोड़ दिया जाता था और पैर के अगले हिस्से को और अधिक अन्दर की तरफ मोड़ दिया जाता था। उसे कपड़े से बाँध दिया जाता था।

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इसी स्थिति में इन छोटी लड़कियों को लम्बी दूरी तय करनी होती थी जिससे उन्हें दर्द सहने की आदत हो जाए। सालों एक ही स्थिति में रहने की वजह से वो छोटे ही रह जाते थे। तथा ऐसे पैरों के लिए स्पेशल जूते बनाए जाते थे जो गुड़ियों के जूते जैसे लगते थे।

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फुट बाइंडिंग के बहुत ही घातक परिणाम सामने आते थे। महिलाओं के पैरों में इन्फेक्शन हो जाते थे। पैर की हड्डी के बार-बार टूटने की समस्या भी सामने आती थी। बहुत ध्यान रखने के बावजूद भी महिलाओं को कई समस्याओं से गुज़ारना पड़ता था। ऐसा माना जाता था की लोटस फुट होने पर महिलाओं की चाल और अधिक मोहक हो जाती है। इसे एक सफल शादी के सूत्र के रूप में देखा जाता था। पर कई आलोचक इस थ्योरी को सही नहीं मानते थे। कई लोगों का मानना है कि फुट बाइंडिंग को पुरुषों का महिलाओं पर एक पकड़ के रूप में देखा जाता है।

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इस चलन पर क्रिश्चियन मिश्नरियों ने खुल कर विरोध करना शुरू किया और उन्होंने “नार्मल फुट” नाम से एक मुहिम चलाई। पर ये जानकार हैरानी होती है कि 1930 के दशक तक यह ट्रेंड चीन की महिलाओं में देखने को मिलता रहा। भारी विरोध के चलते लोग जागरूक हुए और फुट बाइंडिंग धीरे धीरे ख़त्म हो गयी।

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