एम4पीन्यूज।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स को लाँच करके नया इतिहास रचा है. एक अंतरिक्ष अभियान में इससे पहले इतने उपग्रह एक साथ नहीं छोड़े गए हैं. इसरो का अपना रिकॉर्ड एक अभियान में 20 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का है. इसरो ने ये कारनामा 2016 में किया था.
इससे पहले जब साल 2014 में भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना उपग्रह मंगल की कक्षा में स्थापित किया था, तब सोशल मीडिया पर एक फ़ोटो बहुत वायरल हुआ था. इस फोटो के वायरल होने के बाद यह मान्यता टूटी थी कि अंतरिक्ष विज्ञान में सिर्फ़ पुरुष ही हैं. बाद में यह पता चला कि ये महिलाएं वैज्ञानिक नहीं, प्रशासनिक विभाग में काम करती थीं. लेकिन यह भी पता चला कि मंगल अभियान में वाकई कई महिला वैज्ञानिक जुड़ी हुई थीं. वे रॉकेट छोड़े जाते समय कंट्रोल रूम में थीं और पल-पल होने वाली घटना पर नज़र रखे हुए थीं.
ऋतु करीधल ने ऐसे तय किया अपना सफर :
लखनऊ में पली-बढ़ी करीधल को बचपन में इस पर बहुत ताज्जुब होता था कि “चांद का आकार कैसे घटता बढ़ता रहता है. चांद के काले धब्बों के पीछे क्या था.”
वे विज्ञान की छात्रा थीं, भौतिकी और गणित से लगाव था, अखबारों में अमरीका के नेशनल एयरोनॉटिकल एंड स्पेस एजेंसी (नासा) और अंतिरक्ष की खबरें खोज कर पढ़ा करती थीं.
मास्टर्स की डिग्री के बाद उन्होंने इसरो में नौकरी के लिए आवेदन किया और इस तरह अंतरिक्ष वैज्ञानिक बन गईं. वे 18 साल से इसरो में काम कर रही हैं. मंगल अभियान से वे और उनके सहकर्मी सुर्खियों में आ गए यह अभियान 2012 के अप्रैल में शुरू हुआ और कामयाब रहा.
नंदिनी हरिनाथ का ‘स्टार ट्रेक’ :
हरिनाथ को अंतरिक्ष विज्ञान से पहला परिचय टेलीविज़न पर साइंस फ़िक्शन “स्टार ट्रेक” से हुआ. लेकिन इसरो के पहले उन्होंने अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने के बारे में नहीं सोचा था. लेकिन मंगल अभियान से जुड़ना उनके लिए बड़ी बात थी.
लेकिन यह बहुत आसान काम नहीं था. शुरू में वहां वैज्ञानिकों ने रोज़ाना 10 घंटे काम किए. लेकिन जब रॉकेट छोड़ने का समय नज़दीक आया, लोगों को 12 से 14 घंटे काम करना पड़ा.
अनुराधा टीके महिला वैज्ञानिकों की रोल मॉडल :
इसरो की वरिष्ठतम महिला वैज्ञानिक की सीमा आकाश तक है. वे संचार उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने की विशेषज्ञ हैं. वे 34 साल से इसरो में हैं और अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में तब से सोचने लगी जब वे सिर्फ़ नौ साल की थीं. अनुराधा को महिला वैज्ञानिकों का रोल मॉडल माना जाता है. वे इससे इत्तेफ़ाक बिल्कुल नहीं रखतीं कि महिला और विज्ञान आपस में मेल नहीं खाते. अनुराधा ने 1982 में जब इसरो ज्वाइन किया था, वहां कम महिलाएं थी और इंजीनियरिंग विभाग में तो और कम थीं.
इसरो में महिला कर्मचारियों की तादाद लगातार बढ़ रही है, पर यह अभी भी आधे से काफ़ी कम है.