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मंदिर में लोग श्रद्धा के साथ माथा टेकने हैं। भगवान से जुडी लोगों की आस्था इतनी ज्यादा होती है कि वो मीलों दूर से नंगे पांव पैदल चलकर भगवान के दरवार में माथा टेकने पहुंचते हैं। उनकी उम्मीदें और आशाएं सब भगवान पर ही निर्भर करती हैं। कुछ लोग तो मन्नत पूरी होने पर बहुत कुछ करते हैं। इसके लिए फूलों की मालाएं,सोना-चांदी और न जानें क्या-क्या चढ़ावा चढ़ाते हैं लेकिन आज हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं,वहां पर फूलों की नहीं चप्पलों की माला चढ़ती है।

जी हां भारत के कर्नाटक में गुलबर्ग जि़ले में स्थित लकम्मा देवी के भव्य मंदिर में मां के भक्त मंदिर के बाहर एक पेड़ पर चप्पल टांगते हैं। ऐसा हर साल चप्पल फैस्टिवल के दिन होता हैं। इस दिन लोगों की मंदिर में बहुत भीड़ होती है। लोगों का मनाना है कि उनकी चढ़ाई गई चप्पल पहनकर मां रात भर घूमती है,जिससे चप्पल चढ़ाने वाले के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।

चप्पल चढ़ाने का यह दिन हर साल दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है। लोगों के अनुसार यहां पहले बैलों की बलि दी जाती थी लेकिन सरकार की तरफ से इस पर रोक लगाने पर चप्पल चढ़ाने की प्रथा शुरू हो गई। यह प्रथा तब से लेकर आज तक चली आ रही है।

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