एम4पीन्यूज|चंडीगढ़

22 मार्च यानि आज का दिन वर्ल्ड वाटर डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। जल ही जीवन है, यह बात हम बचपन से सुनते आये हैं, बावजूद इसके जल की महत्ता को हम आज भी समझ नहीं पाये हैं। 1993 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 22 मार्च को हर साल ‘विश्व जल दिवस’ मनाने का निर्णय किया गया था। तभी से इस अवसर को मनाया जाने लगा।

World Water Day : पानी रे पानी तेरा रंग कैसा...
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इस दिवस को मनाने का मूल लक्ष्य ये था कि सब लोगों के बीच पानी की महत्वता एवं संरक्षण को लेकर जागरुकता फैलाना। लेकिन हम आज भी जल को लेकर इतने लापरवाह हैं कि भूल जाते हैं जल हमारे लिए महत्वपूर्ण संसाधन है। जल के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिसमें सामने आया है कि कैसे विश्व भर में और खास तौर पर भारत में जल को बर्बाद किया जा रहा है। पूरी धरती पर पीने योग्य पानी मात्र दो दशलव आठ प्रतिशत ही शेष है, यही कारण है कि आज जल संरक्षण पर बहुत जोर दिया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी की बर्बादी के कारण पेयजल की मात्रा लगातार घट रही है।

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अब भी है उतना ही पानी लेकिन
यह बात तो स्पष्ट है कि GDP के नाम पर बेतहाशा आर्थिक विकास, संसाधनों का अनुपयुक्त दोहन, औद्योगीकरण और जनसंख्या विस्फोट से पानी का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इन सबके चलते पानी की खपत भी बढ़ रही है। हालांकि एक बात यह भी सच है कि जितना पानी आज से 2,000 साल पहले था, उतना ही अब भी है लेकिन उस वक्त की आबादी आज की कुल आबादी का सिर्फ 3 फीसदी ही थी।

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सब भुला दिया जाता है :
भारत के पास विश्व की समस्त भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही है जबकि विश्व की जनसंख्या का 16.7 प्रतिशत भारत में निवास करता है। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर और भार बढ़ रहा है। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न, पेयजल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, लोग वंचित होते जा रहे हैं। भारत में अभी तक 75.8 मिलियन लोगों तक सुरक्षित पेयजल नहीं पहुंच पाया है।
गर्मी आते ही देश के दिल्ली, मुंबई सरीखे इलाकों में पानी का संकट शुरु हो जाता है। तमाम नगरपालिकाओं और महानगरपालिकाओं के चुनाव में पानी मुख्य मुद्दा होता है लेकिन रूठे हुए को मनाकर सरकार बनाने के बाद सब भूला दिया जाता है।

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ये होगी जरूरत

अब बात आंकड़ों की करते हैं। सेंट्रल वाटर कमीशन बेसिन प्लानिंग डारेक्टोरेट, भारत सरकार की ओर से 1999 में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार देश में घरेलू उपयोग के लिए जहां साल 2000 में 42 बिलियन क्यूबिक मीटर की जरूरत थी, वो साल 2025 में बढ़कर 73 बिलियन क्यूबिक मीटर और फिर साल 2050 में जरूरत 102 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी।

World Water Day : पानी रे पानी तेरा रंग कैसा...
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बढ़ती ही रहेगी जरूरत
इसी तरह सिंचाई, उद्योग, उर्जा समेत अन्य को जोड़कर सालाना जरूरत को ध्यान में रखा जाए तो साल 2000 में जहां 634 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत थी, वो साल 2025 में बढ़कर 1092 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी और फिर साल 2050 में जरूरत 1447 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी।

World Water Day : पानी रे पानी तेरा रंग कैसा...
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बनाई गई है जलनीति
यहां आपको बताना जरूरी हो जाता है कि हमारे देश में राष्ट्रीय जल नीति – 2012 बनाई गई। इससे पहले राष्ट्रीय जल नीति – 1987 भी बनाई गई थी। दोनों में लगभग समान बातें कही गई हैं। अब ये बाते किसके, कितनी समझ में आई, ये सर्वे का मुद्दा है। एक बार फिर से आंकड़ों की ओर चलते हैं।

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जब आती है बाढ़
अगर हम देश के जमीनी क्षेत्रफल में से मात्र 5 फीसदी क्षेत्रफल में ही गिरने वाले बारिश के पानी को इकट्ठा कर सकें तो एक बिलियन लोगों को 100 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिल सकता है। हमारे देश में एक और अजीब बात है। अब इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य। देश के तमाम हिस्सों में हर साल बाढ़ आती है। नदियां अपने उफान पर होती हैं और इन्हीं इलाकों में सूखा पड़ता है।

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कुछ ख़ास कहते ये आंकड़े :
1. आंकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है।

2. मुंबई में रोज वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।

3. दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के वजह से रोज 17 से 44 % पानी बेकार बह जाता है।

4. बाथ टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 पानी लीटर खर्च होता है।

5. पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। 97.5% पानी समुद्र में है, जो खारा है. बाकी 1.5 % पानी बर्फ के रूप में ध्रुव प्रदेशों में है। इसमें से बचा 1% पानी नदी, सरोवर, कुओं, झरनों और झीलों में है, जो पीने के लायक है। इस 1% पानी का 60वां हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है, बाकी का 40 वां हिस्सा पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ-सफाई में खर्च करते हैं।

6. विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।

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